समुद्रमिव दुर्धर्षं नृपं भाग्यमतः परम् ।।
अर्थात् जिस प्रकार नीचे की ओर बहती नदी अपने साथ तृण आदि जैसे तुच्छ पदार्थों को समुद्र से जा मिलाती है, ठीक वैसे ही विद्या ही अधम मनुष्य को राजा से मिलाती है और उससे ही उसका भाग्योदय होता है । आधुनिक सामाजिक परिप्रेक्ष्य में राजा का तात्पर्य अधिकार-संपन्न व्यक्तियों से लिया जाना चाहिए जो व्यक्ति की योग्यता का आकलन करके उसे पुरस्कृत कर सकता हो । विद्या ही उसे इस योग्य बनाती है कि वह ऐसे अधिकारियों के समक्ष स्वयं को प्रस्तुत कर सके और अपने ज्ञान से उन्हें प्रभावित कर सके ।
हितोपदेश
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